डॉ. आनंद प्रकाश श्रीवास्तव
- साठ से अधिक का हर सातवां व्यक्ति मनोविकार का शिकार
- लगातार बढ़ रहे हैं बड़ी उम्र में मानसिक विकार के मामले
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए सामाजिक मेलजोल बहुत अहम
सरसरी तौर पर नजर डालें तो मेरठ निवासी, 65 साल के रिटायर्ड बैंककर्मी सुरेंद्र पाल त्यागी के पास सबकुछ था। समझदार पत्नी, पेंशन, मकान और दो बच्चे, जो फिलहाल इंग्लैंड में आईटी प्रोफेशनल्स हैं। लेकिन बीते कोई आठ-नौ महीने से वह पत्नी से जब-तब बोलते रहते कि अब जिंदगी से मन ऊब-सा गया है। कुछ अच्छा नहीं लगता, और हर वक्त डर सताता रहता है कि ना जाने कब, कौन अकेला देखकर मेरा गला दबा देगा। पत्नी उन्हें बार-बार समझातीं कि आप बेवजह परेशान रहते हैं, ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन समझाने का असर न होता देखकर श्रीमती त्यागी ने अपने बच्चों से बातचीत की, तो उनका कहना था कि पापा को किसी साइकियाट्रिस्ट को दिखाइए।
यह कहानी सिर्फ त्यागी साहब की नहीं है। इसी तरह की या इससे मिलती जुलती कहानियां लगभग हर गली, हर मोहल्ले में मिल जाएंगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 15 प्रतिशत लोग मानसिक विकार से पीड़ित हैं। और इन 15 प्रतिशत लोगों में से ज्यादातर डिप्रेशन और डिमेंशिया (मनोभ्रम) के शिकार हैं। हाल में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि ऐसे लगभग 1,000 उम्रदराज लोगों में से, जिनके बच्चे विदेश में हैं, ज्यादातर अकेलेपन से परेशान थे। करीब 39 प्रतिशत बुजुर्गों को मलाल था कि वे अपने करीबियों के साथ वक्त नहीं गुजार पा रहे हैं। 10 में से सात लोगों ने तो यह भी स्वीकार किया कि उनमें सामाजिकता की कमी है और उन्हें लगता है कि आस-पास रहने वाले लोगों से सामाजिक संवाद बढ़ाना चाहिए।
इस साल अप्रैल में जब श्रीमती त्यागी, नई दिल्ली स्थित मानसिक रोगों के इलाज के लिए प्रतिष्ठित विद्यासागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, न्यूरो एंड एलायड साइंसेज (विमहांस) में परामर्श लेने आईं तो उस समय त्यागी साहब की सबसे बड़ी शिकायत यही थी, रिटायरमेंट के बाद खुद को बेकार महसूस करता हूं और चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो सके, दुनिया से छुटकारा मिल जाए।’ डायबिटीज और डिप्रेशन का मरीज हो जाने के बाद हर समय लगता है कि जिंदगी में कोई आनंद नहीं है तो जिंदा रहने का क्या मतलब।
विमहांस के डॉक्टरों के मुताबिक, आम इंसानों की तुलना में उम्रदराज लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होने की आशंका बहुत ज्यादा रहती है, क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग डायबिटीज, हाइपरटेंशन या फिर कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। अकेलापन और अपने समय का सदुपयोग ना कर पाने का मलाल भी बुजुर्गों के लिए मानसिक विकार की वजह बनते हैं। एक सीनियर डॉक्टर ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से एक और चिंताजनक प्रवृत्ति पर उनकी नजर है। उन्होंने गौर किया है कि मनोविकार की देर से शुरुआत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अगर कोई उम्रदराज व्यक्ति अलग-थलग रहता है, लगातार हमउम्र लोगों के खिलाफ होने वाले अपराध के बारे में पढ़ता है, और उसकी वजह से उसके मस्तिष्क की कोशिकाओं में परिवर्तन होता है, तो आशंका रहती है कि वह देर से शुरू होने वाले मनोविकार से पीड़ित हो जाए।
महानगरों या बड़े शहरों में, जहां पड़ोसियों से लिफ्ट के अलावा, कम ही मुलाकात होती है, और जहां आमतौर पर अपराध की दर बहुत ज्यादा होती है, वहां बुजुर्गों को अपनी शारीरिक हिफाजत की चिंता सताने लगती है। उसी सर्वे के मुताबिक करीब 22 प्रतिशत बुजुर्गों को सबसे ज्यादा चिंता अपनी सुरक्षा को लेकर थी। उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि दुनियाभर में हर छठे बुजुर्ग को किसी ना किसी तरह के दुर्व्यवहार का अनुभव होता है।
डॉक्टरों के मुताबिक, मानसिक उन्माद (पेरनॉइअ) कई बार डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश का पहला संकेत होता है। जब किसी बुजुर्ग को तालों की चाबी खोजने में परेशानी होने लगती है, बैंक अकाउंट का विवरण याद नहीं रहता है, या वह हर चीज को शक की निगाह से देखने लगता है, तो फिर मान लेना चाहिए कि वह डिमेंशिया से पीड़ित है। उनके अनुसार सामाजिक मेलजोल इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। बुजुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य तभी प्रभावित होता है, जब वे अपने आप को अलग-थलग या अकेला महसूस करते हैं, क्योंकि आमतौर पर उन्हें यही लगता है कि वो स्वतंत्र रूप से कहीं आ-जा नहीं सकते या किसी से मिलजुल नहीं सकते। नियमित व्यायाम भी बुजुर्गों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है। डॉक्टर बताते हैं कि त्यागी साहब ने उनकी सलाह पर गंभीरता से अमल किया। दो-ढाई महीने के इलाज के बाद उनकी परेशानी काफी हद तक दूर हो गई थी। पिछले दिनों मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि अब बिल्कुल ठीक हूं।
डॉक्टरों के बताया कि उम्रदराज लोगों के लिए यही सलाह है कि अगर मनोविकार से बचना है तो अपनी सामाजिकता का दायरा बढ़ाइए। अपने आप को किसी ना किसी काम में व्यस्त रखने का प्रयास कीजिए। और अगर कोई शारीरिक परेशानी ना हो तो व्यायाम के लिए कुछ समय जरूर निकालिए। अगर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल में रहते हैं और बार-बार ग्राउंड फ्लोर पर आने में दिक्कत होती है तो अपने फ्लोर के कॉरिडोर में ही टहलिए। अगर इन सलाहों पर अमल करेंगे तो निश्चित तौर पर मनोविकार को दूर रखने में काफी हद तक कामयाब होंगे।